महात्मा गांधी (बापू ) की नगरी में एक माँ बनी मोची
हम सभी ने तमाम महिलाओं को फल-फूल, सब्जी, चाट,पानी पुड़ी, चाय, पान व फुटपाथ पर जूते-चप्पल, कपड़ा इत्यादि बेचते देखा है परंतु किसी महिला मोची को नहीं देखा । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की नगरी वर्धा शहर में अपने बच्चों का भविष्य सवांरने के लिए 30 वर्ष की प्रतिभा सन् 2005 से मोची का काम कर रही है। पति की कमाई से घर का खर्च चलना मुश्किल हो रहा था, थोड़े समय बाद ही प्रतिभा के जीवन में नन्हीं सी जान ने दस्तक दी फिर उसको उस नन्हीं सी जान की फिकर सताने लगी जिसके चलते प्रतिभा ने सौ दो सौ कमाने का निर्णय किया। प्रतिभा के पति राजेश शुरु से ही मोचीगीरी के पेशे में हैं जिससे उसने घर बैठे ही उससे मोची का काम सीखी और पति की तरह प्रतिभा भी वर्धा की सड़कों पर अपनी दुकान सजाने लगी। प्रतिभा घर का काम निपटाने के बाद तपती धूप हो या कड़ाके ठण्ड व तेज बारिश वह सड़क के किनारे अपनी दुकान लेकर पहुंच जाती है। प्रतिभा के घर में कुल पांच सदस्य हैं सास, पति और दो बच्चे लड़का 12 साल का और लड़की 8 साल की इन्हीं का भविष्य सवांरने के लिए ये सड़क किनारे अपनी दुकान सजाने लगी। प्रतिभा कहती है लोग इस काम को करते से कतराते हैं,शर्माते हैं परंतु कोई काम इमानदारी से किया जाए तो उसमें क्या शर्म, कोई भी काम हम अपने हालात के अनुसार चुनते हैं, और अपने परिवार को खुश रखने की कोशिश करते हैं मैंने भी अपने हालात के अनुसार काम चुना और अपने परिवार को पाल रही हूं।
Badhiya amit
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