बेजुबानों की बोलती नज़रें..........
हजारों लाखों बच्चे ऐसे हैं जब उन्होंने पहली बार अपनी खुली नजरों से इस संसार को देखा तो उनके सर पर न तो मां की ममता का आंचल था और न ही पिता का साया जो उनकी किलकारियों की गूंज से मनमुग्ध होते, उनकी सुरक्षा की गारंटी देते, उन्हें गोद में उठाते लाड-प्यार करते, उन्हें चलना सिखाते, दुनिया से रुबरु होना सिखाते। फिर भी ऐसे लाखों बच्चों हैं जो मुस्कुरा रहे हैं हमारे आपके चेहरे को देखकर के उनके प्रति हमारे आपके थोड़े स्नेह को देखकर के मुस्कुरा रहे हैं । उन्हें हमसे कुछ नहीं चाहिए शिवाय मुस्कुराकर देखने दो पल ठहरकर उनसे बात करने के। बहुत बच्चे ऐसे भी हैं जो सुबह की पहली किरण निकलते ही सड़कों पर अपना बचपन बेचना शुरु कर देते हैं।
फुटपाथ पर बिकता बचपन खेलने कूदने की उम्र में खिलौने बेचकर पेट भरने वाले बच्चों की तदाद कम नहीं है, हर शहर में दिखाई दे देंगे। |
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