Tuesday, November 7, 2017

बेजुबानों की बोलती नज़रें..........


हजारों लाखों बच्चे ऐसे हैं जब उन्होंने पहली बार अपनी खुली नजरों से इस संसार को देखा तो उनके सर पर न तो मां की ममता का आंचल था और न ही पिता का साया जो उनकी किलकारियों की गूंज से मनमुग्ध होते,  उनकी सुरक्षा की गारंटी देते, उन्हें गोद में उठाते लाड-प्यार करते, उन्हें चलना सिखाते, दुनिया से रुबरु होना सिखाते। फिर भी ऐसे लाखों बच्चों हैं जो मुस्कुरा रहे हैं हमारे आपके चेहरे को देखकर के उनके प्रति हमारे आपके थोड़े स्नेह को देखकर के मुस्कुरा रहे हैं । उन्हें हमसे कुछ नहीं चाहिए शिवाय मुस्कुराकर देखने दो पल ठहरकर उनसे बात करने के। बहुत बच्चे ऐसे भी हैं जो सुबह की पहली किरण निकलते ही सड़कों पर अपना बचपन बेचना शुरु कर देते हैं।


खामोश जुबां, मुस्कुराती निगाहें
आनंदवन वरोरा में बाबा आम्टे द्वारा बेसहारों के लिए बसाए गए आशियाने में सैकड़ों बच्चे ऐसे हैं जिनको जन्म देने वाला का या अपना सगा कहलाने कोई नहीं। इनके पास न तो जूबां है और न तो दुनिया के खट्टी-मीठी आवाज को सुनने की क्षमता हां  इनमें टैलेंट कूट-कूट कर भरा है कोई अच्छा क्रिकेट खिलाड़ी है तो कोई कैरम और सतरंज का खिलाड़ी। ये इशारोंं-इशारों में खुद को बयां करते हैं ।

फुटपाथ पर बिकता बचपन
खेलने कूदने की उम्र में खिलौने बेचकर पेट भरने वाले बच्चों की तदाद कम नहीं है, हर शहर में दिखाई दे देंगे।

मां के कदमों से कदम मिलाकर चलो, जीवन के  सफर में मुस्कुराकर चलो
खुशियां रहने और मुस्कुराने के लिए किसी वजह की जरुरत नहीं यह सीख सर बोझा लिए चल रहे इस  मासूम से ली जा सकती है।(अपनी मुस्कुराहट को मिला दो मेरी मुस्कान से)

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