Thursday, November 9, 2017

खूबसूरती और इंसानियत की मिसाल "कर्मयोगियों का आनंदवन"

महज एक बीमारी के चलते कोई कैसे अपनों से हमेशा हमेशा के लिए मुंह मोड़ लेता है,किसी का मन एक बीमारी से इतना बिचलित कैसे  हो जाता है कि वह अपने खून के रिश्ते भुलाने में पल भर देर नहीं करता है। कोई कैसे एक ऐसे मासूम को  कूड़ेदान,कचरे में फेंककर गुम हो जाता है जिसने अभी अपनी आंखें भी नहीं खोलीं । एक वो है जो इन्हें मरने के लिए छोड़कर चला जाता है, दूसरा वो है  जो कहीं से घूमते भटकते इनतक पहुंचता है और मसीहा बनकर इन्हें दुनिया में आने का अधिकार दिलाता है। यह वह मोड़ है जहां एक ओर इंसानियत मरती है और दूसरी ओर  इंसानियत मिसाल कायम करती है। ऐसे ही मोड़ से बारिश में भीगते एक कुष्ठ रोगी की सेवा से शुरु हुआ "आनंदवन" । यह वो जगह है जहां समाज से ठुकराए गए इंसानों को पनाह मिलती है, उन्हें एक ऐसी दुनिया मिलती जहां सब लोग एक दूसरे से मुस्कुराकर बातें करते हैं, किसी के मन में किसी भी प्रकार का कोई खोट नहीं होता। ये वो जगह है जहां सबको बराबर सम्मान मिलता है, अपनापन मिलता है, जीवन जीने  के नए-नए आयाम होते हैं, सबके तौर तरीके में अपनापन होता है। यह वो जगह है जहां बेघर को घर, अनाथ को परिवार, नंगे- भूखे को कपड़ा और रोटी मिलती है। यह वो जगह है जहां  समाज से दुतकार गया इंसान (भीख मांगने वाला) करोड़ो का उत्पादन कर रहा है। यहां प्रेम की बयार चलती है, इंसानियत की महक पूरे वातावरण में बिखरी रहती है। इसका निर्माण भारत के महान समाजसेवी बाबा आम्टे द्वारा  समाज से ठुकराए गए लोगों को पनाह ,आत्मसम्मान से भरा जीवन जीने, खुद कमाओ खुद खाओ किसी के एहसान पर पलने की जरुरत नहीं के तर्ज किया गया।
आनंदवन प्राकृतिक सौंदर्य से ढका हुआ है यहां की हवाओं में शिमला जैसी ताजगी महशूश होती। यहां समाज से ठुकराए गए इंसान रहते हैं, अनाथ रहते हैं, मूक बधीर व दृष्टिहीन बच्चों को सहारा मिलता है। यहां शारीरिक रुप से असक्षम बच्चों में कलाओं का असीमित हुनर कूट कूटकर भरा हुआ है।
यहां दूध-दही, घी, खोआ, पनीर से लेकर कपड़ा, जूता-चप्पल, खिड़की दरवाजे, फल-फूल, पैधे तक का व्यवसाय आनंदवन में रहने वाले लोगों द्वारा किया जाता है। आनंदवन आज सर्व साधन सपन्न है यहां उन्नत किस्म की खेती होती है।  वर्तमान में 180 हेक्टेयर में फैला आनंदवन अपनी आवश्यकता की हर वस्तु स्वंय पैदा कर रहा है। आनंदवन में तकरीबन 600 कुष्ठ रोगी रहते हैं यहां इनकी सेवा की जाती इलाज किया जाता है और उन्हें रोगी से उच्च कर्मयोगी बनाया जाता है।

आनंदवन में ढलती शाम का मनमोहक दृश्य ( आनंदवन पाकृतिक सौन्दर्य  को भी अपने समेटे हुए है)

हमें खुशियों की तलाश नहीं, हम लोग तो बिंदास जीते हैं।

आनंदवन में पानी बचत करने के अनेक पाकृतिक तरीक अपनाए जाते हैं, यहां तालाबों की भरमार है। तालाब किनारे बसा आनंदवन गांव

आनंदवन की खेती 

आनंदवन की हरी भरी सड़कों पर हवाओं से बाते करते कई इंसान मिल जाते हैं जो सैकड़ों के बीच में रहते हुए अपनों की याद में हमेशा खोए रहते हैं। उनकी यादों को यादकर उम्र गुजार रहे हैं।

अकेले तन्हा उम्र कैसे गुजारेंगे

बोलती नजरों ः यहां आजाव से नहीं नजरों से बात करने  का चलन है,इन नजरों की बेबसी कभी कभी अपनों को ढूढने लगती हैं, बात करना चाहती हैं लेकिन मायूसी के अलावा कुछ हाथ नहीें आता है।


हम साथ-साथ हैं-इन बच्चों को जन्म देने वाला कौन है इन्हें नहीं पता, ये बच्चे न तो सुन सकते हैं और न ही कुछ बोल सकते हैं बस इनकी मुस्कुराहट में ही इनका भाव छुपा होता है। इनकी नजरें बातेें करती हैं। 

No comments:

Post a Comment